हैदराबाद सदियों से निजामों का प्रिय शहर और मोतियों के केंद्र के रूप में जाना जाता रहा है और यहां आकर देख सकते हैं मशहूर गोलकोंडा किला। मुख्य शहर से 11 किमी दूर बसा यह किला यहां के लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। जिसे देखे बिना आपकी हैदराबाद यात्रा अधूरी है।गोलकोंडा किले का नाम तेलुगू शब्द ‘गोल्ला कोंडा’ पर रखा गया है।
देश के सबसे बड़े और सुरक्षित किलों में से एक गोलकुंडा बहमनी के शासकों के भी अधीन रहा। गोलकोंडा में अरब व अफ्रीका के देशों के साथ हीरे व मोतियों का व्यापार होता था। दुनियाभर में मशहूर कोहिनूर हीरा भी यहीं मिला था। कुतुबशाही वंश के राजाओं की कला के प्रति दिवानगी को इस किले में आकर साफतौर पर देखा जा सकता है।
शुरुआत में यह मिट्टी का किला था लेकिन कुतुब शाही वंश के शासनकाल में इसे ग्रेनाइट से बनवाया गया। दक्कन के पठार में बना यह सबसे बड़े किलों में से एक था, इसे 400 फुट उंची पहाड़ी पर बनवाया गया था। इसमें सात किलोमीटर की बाहरी चाहरदीवारी के साथ चार अलग– अलग किले हैं। चाहरदीवारी पर 87 अर्द्ध बुर्ज, आठ द्वार और चार सीढ़ियां हैं। इसमें दुर्ग की दीवारों की तीन कतार बनी हुई है। ये एक दूसरे के भीतर है और 12 मीटर से भी अधिक उंचे हैं।
सबसे बाहरी दीवार के पार एक गहरी खाई बनाई गई है जो 7 किलोमीटर की परिधि में शहर के विशाल क्षेत्र को कवर करती है। इसमें 8 भव्य प्रवेश द्वार हैं जिन पर 15 से 18 मीटर की उंचाई वाले 87 बुर्ज बने हैं। किले में बनी अन्य इमारतें हैं– हथियार घर, हब्शी कमान्स, ऊंट अस्तबल, तारामती मस्जिद, निजी कक्ष नगीना बाग, रामसासा का कोठा, , अंबर खाना और दरबार कक्ष आदि। इनमें से प्रत्येक बुर्ज पर अलग– अलग क्षमता वाले तोप लगे थे जो किले की अभेद्य और मध्ययुगीन दक्कन के किलों में इसे सबसे मजबूत किला कहा जाता था।