7 मई 1861 को यानि आज के दिन नोबल पुरस्कार विजेता गुरुवदेव रविन्द्रनाथ टैगोर का जन्म हुआ था। उन्हें राष्ट्रकवि भी कहा जाता है। भारत का राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’ उन्हीं की कलम से निकला है। आज उनके जन्मदिवस के अवसर पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। गुरुदेव के जन्मदिवस पर जानते हैं उनके ही द्वारा लिखे गए ‘जन-गण-मन’ की दास्तां…
किसी देश का राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान उसकी अंतरराष्ट्रीय पहचान होता है। साथ ही देशवासियों के लिए सबसे सम्मान का प्रतीक भी माना जाता है। भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ पहली बार 108 साल पहले, 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन के दौरान बंगाली और हिंदी भाषा में गाया गया था।
गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1911 में ही इस गीत की रचना की थी। उन्होंने पहले राष्ट्रगान को बंगाली में लिखा था। बाद में आबिद अली ने इसका हिंदी और उर्दू में रूपांतरण किया था। 24 जनवरी 1950 को आजाद भारत की संविधान सभा ने इसे अपना राष्ट्रगान घोषित किया था।
गुरु रविन्द्रनाथ टैगोर ने ही अपने इस गीत का 1919 में अंग्रेजी अनुवाद ‘दि मॉर्निंग सांग ऑफ इंडिया’ किया था। इसके बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू के विशेष अनुरोध पर अंग्रेजी संगीतकार हर्बट मुरिल्ल ने इसे ऑर्केस्ट्रा की धुनों पर भी गाया था। गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने ही बांग्लादेश का राष्ट्रगान (अमार सोनार बांग्ला) भी लिखा था।
राष्ट्रीय प्रतीकों और चिन्हों की तरह राष्ट्रगान के सम्मान को बरकरार रखने के लिए भी कानून बनाया गया है। राष्ट्रगान की आचार संहिता के तहत राष्ट्रगान गाते समय नियमों और नियंत्रणों के समुच्चय को लेकर भारतीय सरकार समय-समय पर निर्देश देती है। राष्ट्रगान को गाए जाने की कुल अवधि 52 सेकेंड है। इसे 49 से 52 सेकेंड के बीच ही गाया जाना चाहिए।