युवा पीढ़ी को पेड़ पौधों और चिड़ियों से जोड़ा

संपादकीय

जब भी मैं अपनी आंख बंद करती हूं मेरे सामने बचपन के वे दिन सामने आ जाते है, जब सुबह पक्षियों के कलरव से मेरी आंखे खुलती थी और नाश्ते के समय मां के साथ मैं गोरैया और दूसरे पक्षियों को रोटी के टुकड़े और फल खिलाती थी। मैं गांव के बजाय शहर में पली बड़ी। इसके बावजूद पेड़ पौधे और पक्षियों से बचपन से ही मेरा जिस तरह जुड़ाव रहा, उसके लिए मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूं क्योंकि आज प्रकृति के वे दृश्य शहरों और कस्बो में तो नही दिखते। अजीब संयोग है कि शहरों में अपना पूरा जीवन बिता चुकने के बाद बुढ़ापे में रहने लगी हूं मैं केरल में एर्नाकुलम जिले के मुपथ्थाडम गांव में रहती हूं। यह वही गांव है, जिसे छोड़कर मेरे पिता शहर चले गए थे।

मै जब इस गांव में आयी थी, तो यहां वैसी हरियाली नही दिखी जैसी केरल के गांव में अमूमन दिखती है। यहां तक कि गांव में पानी के स्रोत भी कम है। जो बात मुझे खटकी वह यह कि हरियाली और पानी के अभाव में पक्षियां मेरे गांव में आते ही नही थे। बचपन में परिवार के साथ जब गांव आती थी। तो एक दो तालाब के अलावा थोड़ी दूर पर एक छोटी सी नदी भी थी। आज पानी के वे सारे स्रोत सूख चुके हैं गावं में बसने के साथ ही मैंने कुछ अनूंठा करने के बारे में सोचा।

मैनें दस हजार पौधें खरीदकर पूरे गांव में बटवां दिए मैंने गांव के युवाओ को मेरे अभियान से जोड़ लिया है। उनके साथ पूरे गांव में घूम घूमकर मैंने पौधे लगवाए और इसकी भी व्यवस्था की कि उन पौधों को लगातार पानी मिलता रहे। मेरे तीन बेटे है। जो नौकरी करते है।और शहर में रहते है नौकरी से रिटायर होने के बाद मेरा अपना रेस्टोरेंट और लॉटरी की व्यवस्था है। जिससे पर्याप्त आमदनी हो जाती है चूंकि बेटे कि जिम्मेदारी मैनें पूरी कर दी है इसलिए अपने अभियान में में मुझे पैसे की कमी नही होती। उल्टा जिन युवाओं को मैने अपने साथ जोड़ा है, उनमें से कुछ की मैं आर्थिक सहायता करता रहता हूं चूंकि प्रकृतिक जलस्रोतों को पुनर्जीवित करना बड़ा कम है इसलिए गर्मियों में पक्षियों को पानी पिलाने के लिए मैनें काम शुरु किया।

इसके तहत मैनें कुल दस हजार से भी अधिक मिट्टी के बर्तन खरीदें फिर अपने गांव में अलग अलग उन बर्तनों को रखने के अलावा मैंने शहरों की सोसायटी में भी वे बर्तनों को बांटे में मैने यह अभियान पूरे जिले में फैलाया, जिसमें मेरे कई लाख रुपये खर्च हुए गांव में रखे गए। कुछ बर्तन तो इतने बड़े है कि उनमें सौ चिड़ियां एक साथ पानी पी सकती है। जिले के सभी गांव में मैनें युवाओं को वॉलंटियर्स तैनात किया है जो नियमित रुप से पौधों और पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करते हैं। चूंकि यह पर्यावरण से जुड़ा काम है, इसलिए सभी जगहों में मेरे इस अभियान को भरपूर समर्थन मिला है। अनेक महिलांए और बुजुर्ग खुशी-खुशी यह काम एक मिशन के तहत करते है। हाल ही में मैने पूरे जिले में पचास हजार पौधें बांटे है। मेरे गांव में अब सुबह से ही पक्षियों का कलरव सुनाई पड़ता है। सघन पौधरोपण के कारण हरियाली भी खूब दिखने लगी है। जल्दी ही गांव के दो पुराने तालाबों के जीर्णध्दार का काम शुरु करने वाली हूं। जिसमें स्थानीय लोगों के साथ-साथ जिला प्रशासन ने भी सहयोग करने का आश्वासन दिया है।

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