कुंडलनी जागरण के बाद होती है दैवी शक्ति की अनुभूति

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आज परमपूज्य श्री माता जी के असीम आशीर्वाद से 28/9/2021, शाम 3 बजे,दिन मंगलवार को सहजयोग का जन कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के ( कमसडी ग्राम सभा ( बाराचवर)) में  सुसंपन हुआ। कार्यक्रम में आये सभी सत्य के साधकों को कुण्डलिनी  जागरण द्वारा आत्म साक्षात् कार की अनुभूति कराई गई। कुडंलिनी शक्ति के जागृत होने पर साधक की हाथों की अंगुलियों के अग्रभाग और सिर के तालू भाग से गर्म या फिर ठंडी ठंडी लहरें निकलती हैं। जिसे हम चैतन्य लहरी कूल ब्रीज कहते हैं। इसके लिए पहले हमें अपने अंदर स्थित सात चक्रों और तीन नाड़ियों को जानना जरूरी है। मानव शरीर के अंदर सात चक्र होते हैं- 1.मूलाधार, 2.स्वाधिष्ठान, 3.नाभि, 4.अनहत (ह्रदय), 5.विशुद्धि, 6.आज्ञा, 7. सहस्त्रार। तीन नाडियों का नाम है इडा, पिंगला और सुषुम्ना।
इसके अलावा हमारे अन्दर सूर्य और चन्द्र के चक्र भी होते हैं। ब्रम्हरंध्र को भेदने के बाद तीन और चक्र हमारे अंदर हैं और कार्य करते हैं – बिंदु, अर्धबिंदु और वलय। ये सात चक्र जो हैं इनकी पीठ हमारे मस्तिष्क में है। यहाँ तीन जो शक्तियाँ हमारे अंदर प्रवाहित हैं – हमारी इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति और हमारी धर्म शक्ति जिनसे हमारी क्रांति का पथ बनता है, जिससे हम Revolutionary Process (क्रांतिकारी प्रक्रिया) में जाते हैं, यहाँ तीनों ही शक्तियाँ एकत्रित हो जाती हैं। इस प्रकार से इस मस्तिष्क में सात चक्र और तीन महाशक्तियों का समन्वय होता है।
जो ये सातों चक्र हैं आपके अंदर, ये ही वो मानवता के अनेक रंग हैं जिनको पिरोती हुई कुण्डलिनी अंदर से जाती है। इसलिए वह सबको समग्र (Integrate) करती है। अगर आप कोई ग़लत काम करना चाहेंगे तो नहीं कर सकते उसकी वजह है कि आपके अंदर जो एक नयी चेतना आ जाती है, जिसे आप चैतन्यमयी चेतना कहते हैं। परमात्मा ने छः चक्र कुण्डलिनी शक्ति के ऊपर और एक नीचे बनाया है। कुण्डलिनी के जागरण से ये जो छः चक्र हैं आलोकित हो जाते हैं और जब ये आलोकित होते हैं तो इनमें बसे हुए देवता भी जाग्रत हो जाते हैं।
सहजयोग ध्यान से कुंडलिनी शक्ति का जागरण व आत्म साक्षात्कार होता है। जिससे साधक को परम चैतन्य की अनुभूति होती है। नियमित ध्यान से शरीर के ऊर्जा केंद्र (चक्र, नाड़ी) शुद्ध व निर्मल होने के साथ आत्मज्ञान व आत्मबल प्राप्त होता है। साथ की विवेकशीलता व मानसिक शांति मिलती है। सहजयोग करने से साधक खुद को परमेश्वरी साम्राज्य में महसूस करता है। ईष्र्या, द्वेष, क्लेश से भी मुक्त होता है। शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक बीमारी, चिंता व तनाव से मुक्ति मिलती है। इससे बच्चो में शैक्षणिक व बौद्धिक सुसंस्कारों का विकास भी होता है।
बलिया से जितेन्द्र यादव की रिपोर्ट

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