2019 का आम चुनाव इस मायने में अलग है कि आजादी के बाद यह पहला चुनाव है जिसमें बिजली, सड़क, पेयजल जैसे बुनियादी मुद्दे लगभग गायब हैं। इसका कारण है कि पिछले पांच वर्षों में मोदी सरकार आम जनता तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने में कामयाब रही है। पिछले पांच वर्षों में सबसे बड़ा सुधार बिजली क्षेत्र में देखने को मिला है।
हर घर तक बिजली पहुंचाने में मिली कामयाबी का ही नतीजा है कि देश से लालटेन युग की लगभग विदाई हो रही है। एक समय बिजली आपूर्ति के मामले में गांवों के साथ सौतेला व्यवहार किया गया। आजादी के बाद बिजलीघर भले ही गांवों में लगे, पर इनकी चारदीवारी से आगे लालटेन युग का ही बोलबाला रहा। कारण कि इन बिजलीघरों से निकलने वाले खंभों एवं तारों के जाल से शहरों का अंधेरा दूर हुआ। यद्यपि गांवों को रोशन करने की छिटपुट कवायद आजादी के बाद ही शुरू हो गई थी, लेकिन इसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इसीलिए संस्थागत उपाय शुरू किए गए।
इसके लिए 1969 में ग्रामीण विद्युतीकरण निगम की स्थापना की गई। कई और प्रयास भी किए गए जैसे न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के तहत ग्रामीण विद्युतीकरण, कुटीर ज्योति योजना, त्वरित ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम। इन कार्यक्रमों की आंशिक सफलता को देखते हुए सरकार ने सभी घरों तक बिजली पहुंचाने के लिए समयबद्ध कार्यक्रम तय किए। 2005 में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना शुरू की गई। इसमें दिसंबर 2012 तक सभी घरों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया, पर गांवों का अंधेरा दूर नहीं हुआ। जिन गांवों को आधिकारिक रूप से विद्युतीकृत घोषित किया गया वहां भी बिजली के दर्शन कभी-कभार ही होते थे।
इसके लिए राजनीतिक प्रतिबद्धता की कमी और नौकरशाही की सुस्ती जिम्मेदार रही। दशकों के प्रयास के बावजूद गांवों तक बिजली भले नहीं पहुंची, लेकिन इस दौरान भ्रष्ट नेताओं-ठेकेदारों-नौकरशाहों की कोठियां जरूर गुलजार हो गईं। विद्युतीकृत गांवों की दशा भी कोई बहुत अच्छी नहीं रही। जहां गांवों में 12 घंटे से भी कम की आपूर्ति रही वहीं शहरों में 22 से 24 घंटे की आपूर्ति की गई।