वेक्टर बोडिजीजेजर्न अभियान की महामारी टीम को हैलट के बालरोग अस्पात में एक भी वायरल इंसेफलाइटिस का मरीज नहीं मिला हैं। इस टीम का दावा हैं कि गुरूवार को लगभग एक महीने के रिकार्ड छान लिए गए लेकिन इंसेफलाइटिस का मरीज नहीं मिला। वहीं बालरोग अस्पताल के विभागाध्यक्ष डॅा. यशवंत राव का कहना है कि वायरल इंसेफलाइटिस के औसत 10 रोगी हर महीने आते हैं। और रोगियों के आने का सिलसिला पूरे साल रहता हैं।
स्वास्थ्य विभाग की टीम का यह पाखंड पहली बार नहीं हैं। स्वाइन फ्लू,डेंगू के मौसम में हर साल यह हरकत दौहराई जाती है। मरीज निजी अस्पतालों में मरते हैं और टीम सीधे हैलट पहुंचकर छानबीन करने लगती है, फिर अपना पलड़ा झाड़ लेती है। अलग-अलग अस्पतालों में वायरल इंसेफलाइटिस के दो बालरोगी मरने की खबर अमर उजाला ने प्रकाशित की तो शासन से जांच आ गई। आनन-फानन में टीम बालरोग अस्पताल पहुंच गई और कागजात की छानबीन शुरू की। छानबीन में स्वास्थ्य विभाग की टीम को वे मरीज भी नहीं मिले जिनका अस्पताल में इलाज हुआ है जबकि विभागा डॅा. यशवंत राव खुद हर महीने औसत 10 वायरल इंसेफलाइटिस के मरीज अस्पताल में आने की बात स्वीकारते है।
इसी अस्पताल के विशषज्ञ नाम न छापने के अनुरोध पर बताते हैं कि हर कॅाल डे पर चार-पांच वायरल इंसेफलाइटिस के मरीज आते हैं और इमरजेंसी में हर वक्त पांच से 10 मरीज रहते हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग की टीम निजी अस्पतालों में भर्ती मरीजों का निरीक्षण करने नहीं जाती। मरीज निजी अस्पताल में मरते हैं और विभागीय टीम अभिलेख जुटाने जाती सरकारी अस्पताल में है।
निजी अस्पतालों में टीम के न जाने की बात पर एसीएमओ और वेक्टर बोर्न अभियान प्रभारी डॅा. आरएन सिंह कहते हैं कि उनके पास इतना स्टाफ नहीं है। निजी अस्पतालों से रोगियों की रिपोटिंग करने के लिए कहा गया है। यह बताने पर कि लगातार वायरल इंसेफलाइटिस के मरीज आ रहे हैं, पर कहते हैं कि जब अभिलेख मिलेंगे वे तभी मानेंगे।