यदि किसी व्यक्ति के पास 27216 रुपये हैं तो उसपर जकात निकालना फर्ज है|साढ़े बावन तोला चांदी जो जदीद पैमाने के अनुसार 653 ग्राम /184 मिलीग्राम कीमत 27216 रूपये है|
साढ़े सात तोला सोना /कीमत जदीद पैमाने के अनुसार 93 ग्राम 312 मिलीग्राम( कीमत चार लाख चालीस हजार दो सौ आठ रुपये उनहत्तर पैसे है|
रमजान माह जकात सदका और खैरात देने के लिए अफजल है। इस्लाम में नमाज, रोजा की तरह जकात भी एक बुनियादी फर्ज है। इस्लाम में जकात नहीं देने वाले अमीर इंसान को गुनाहगार माना गया है।
मशहूर स्कालर मुफ्ती साजिद हसनी कादरी ने बताया कि रमजान का महीना बरकतों, रहमतों वाला है। इस माह समाज के लोग जिस्मानी इबादत जैसे नमाज, रोजा व तरावी करते हैं।
इसी तरह माली इबादत जकात, सदका भी अपने माल यानी संपत्ति से अदा करते है। समाज के लोग जिनके पास साढे़ सात तोला सोना,या साढ़े बावन तोला चांदी व इसके मुताबिक पैसा है तो जकात फर्ज है।
इसके साथ ही वर्ष में अचल संपत्ति का ढाई फ़ीसदी हिस्सा भी गरीब यतीम को देना जरूरी है। धर्मगुरु मुफ्ती साजिद हसनी कादरी ने बताया कि लॉक डाउन के चलते देश में आर्थिक संकट बना हुआ है। गरीब मजदूर लोग परेशान हैं।
उनके लिए भूख से लड़ना चुनौती बना हुआ है। रमजान के महीने में लोगों के पास सेहरी, इफ्तार के खाने तक कि परेशानी है। ऐसे मुश्किल हालात में समाज के संपन्न लोग गरीब, मजदूर, यतीम और विधवा आदि जरूरतमंद की जकात व सदका से मदद करें।
जकात के हकदार गरीब रिश्तेदार
भाई, बहन, चाचा, फूफी, मौसी, मामू, बहू, दामाद, सौतेले पिता सौतेली मां, सौतेली औलाद
*जिनको जकात नहीं दे सकते*
सैयद, माता, पिता, दादा दादी नाना नानी बेटा बेटी पोता, पोती, नवासा, नवासी, शौहर, बीबी इनको जकात नहीं दी जा सकती। इस्लाम के अनुसार समाज के संपन्न परिवार इस तरह के लोगों की तोहफे के तौर पर मदद कर सकते हैं।
मुफ्ती नूर मोहम्मद हसनी ने बताया कि सदका फितर ईद उल फितर से पहले अदा करें। सदका, फितर में 2. 45 किग्रा गेंहू या इसकी कीमत जो 50 रुपये तय की गई है।
मुफ्ती साजिद हसनी कादरी ने जकात के बारें में विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि तिजारत बिजनेस को कहा जाता है और जकात एक तरह का वह टैक्स है जिस पर मजहबी पाबन्दी लगा कर अपनी पूंजी से एक तय रकम को निकाल कर उन गरीबों की मदद की जाती है जो किसी के आगे हाथ नहीं फैला सकते।
जकात को अमीर लोगो पर सख्ती के साथ फ़र्ज़ (जरूरी)किया गया है। जिसके न करने वाले को गुनहगार बताया गया है इस पाबंदी का लवो लुआब यह है कि गरीबों की मदद होती रहे।
माले तिजारत वह माल है जिसे बेचने की नियत से खरीदा गया हो उसे माल तिजारत कहते हैं जैसे किसी ने बाइक इस नियत से खरीदी कि इसे अच्छे दम में फायदे से बेचूंगा और नफा कमाउंगा और अगर अपने इस्तेमाल के लिए खरीदी तो यह माल तिजारत हरगिज़ नहीं माल ए तिजारत पर रकात फर्ज है।
माल तिजारत की जकात किस तरह निकाली जाए इसका सबसे आसान तरीका वह यह है कि तमाम माल की कीमत साल के खत्म की वैल्यू के हिसाब से जोड़कर जो रकम बने हैं उसमें से ढाई परसेंट निकाल दें जैसे आपके पास मौजूदा माल की रकम, कैश ,रोकड़, रुपए या वह रकम जो किसी को उधार दी गई हो और उधार दिए हुए सामान की रकम अब इन चारों रकमो को जोड़ लें।
जो भी रकम बनती हो इस रकम को उधार लिए हुए सामान की रकम और उधार लिए हुए रुपए की रकम दोनों को जोड़ें, जो भी बनती हो उसको उस टोटल में से घटाएं और अब जो रकम बचेगी उस रकम का ढाई परसेंट जकात निकाल दें इसी तरह से थोक वाले थोक रेट के हिसाब से और फुटकर वाले फुटकर के हिसाब से निकालें।
माल की कुछ किस्में मसलन कारोबार के लिए दुकान खरीदी उस पर ज़कात नहीं दुकान,मकान और जागीरो में जकात नहीं दुकान मकान खरीदने के लिए अगर एडवांस दिया है तो उस एडवांस की रकम की जकात देनी होगी किराए पर दिए हुए मकान चाहें वह जितनी भी कीमत के हों उन पर जाकात नहीं।
हां उनके किराए से हुई आमदनी पर जकात देनी होगी। किराए पर चलने वाली बसें गाड़ियां और दीगर चल संपत्ति पर जकात वाजिब नहीं। उनकी आमदनी पर जकात वाजिब होगी।
जिसके पास टीवी कंप्यूटर फ्रिज वाशिंग मशीन ओवन आदि हो तो उस माल पर जकात वाजिब नहीं। मकान की सजावट की चीजें जैसे तांबे चीनी के बर्तन वगैरह पर भी जकात नहीं।इसके अलावा बयाना जिसे टोकन मनी कहते हैं किसी चीज को खरीदने बेचने के वक़्त दिया जाता है |
इसका मतलब यह होता है कि जिसने बयाना दिया है अब यह चीज वही खरीदेगा या लेगा इस बयाने की रकम पर भी जकात देनी होगी अगर किसी ने कोई चीज खरीदी और उसका कब्जा नहीं मिला तो खरीदने वाले पर उस माले तेजारत की जकात नहीं इसमें कब्जा शर्त है और बेचने वाले पर भी जकात नहीं इसलिए कि वह चीज बिक चुकी है। अब वह उसका मालिक नहीं रहा।
लेकिन जब खरीदने वाले को कब्जा मिलेगा उस वक्त वह खरीदार इस साल की भी जकात निकालेगा। जकात का सिर्फ मकसद यह है कि गरीब लोगों का फायदा पहुंचा कर उनकी जो भी मदद हो करें।
इस्लाम मजहब में जो भी कानून कायदे बनाए गए हैं वह सिर्फ इसलिए हैं कि इंसान इंसान के काम आए और इंसानियत जिंदा रहे जकात का मसला भी इसीलिए जरूरी करार दिया गया कि अपने पड़ोसी रिश्तेदार और दूरदराज के अजीज लोगों की हर तरह से मदद होती रहे।इस लिए ज़ाकात को अहमियत दी गर्इ है|
रिपोर्ट मुकेश सक्सेना/यूपी सिंह