विकास दुबे के गांव से खौफ, भय और दहशत नहीं गई

कानपुर

भले ही विकास दुबे दो महीने पहले एनकाउंटर में मारा जा चुका है लेकिन उसके गांव वाले अब भी उससे खौफ खाते हैं। यह बात अलग है कि इस बार वाला खौफ उसके ‘भूत’ का है। जी हां, चौकिए नहीं।

बिकरू गांव में अब लाेग कहने लगे हैं कि जितने अपराधी मारे गए हैं उनमें से अधिकांश का क्रियाकर्म नहीं हुआ। ऐसे में उनकी आत्माएं यहां भटकती होंगी। पत्ता भी खनकता है तो शरीर सिहर उठता है।

गांव के कई बुर्जग कहते हैं उन्हें तो अब भी रात में गोलियां की आवाजें सुनाई देती हैं। कई लोगों का तो यहां तक कहना है कि उन्होंने विकास का भूत तक देखा है।

विकास दुबे के गांव से खौफ, भय और दहशत नहीं गई। पहले लोग विकास के खौफ से कांपते थे और अब उसकी रूह (आत्मा) से सहमे हैं। अंधविश्वास में भयभीत ग्रामीण दिन ढलने के बाद विकास के मोहल्ले की ओर नहीं जाते।

10 जुलाई को बिकरू का विकास पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था। उसके अंत के बाद से बिकरू में सन्नाटा ही रहा। जमींदोज कोठी में जंगली जीव, पक्षियों का प्रवास है। गांव के बड़े-बुजुर्गों को दूसरे तरह की दहशत सता रही है।

विकास के खिलाफ अब भी खुलकर कोई कुछ बोलता नहीं। कुछ बुजुर्ग जरूर कहते हैं कि गांव में कई अकाल मौतें हुई हैं। किसी का कर्मकांड नहीं हुआ। सबकी आत्माएं भटक रही होंगी। कर्मकांड तो होना ही चाहिए। क्रिया कर्म नहीं होगा तो उनकी आत्माएं तो भटकेंगी ही।

शाम 7 बजे के बाद विकास के मोहल्ले की ओर कोई नहीं जाता। कुत्ते, बिल्ली की धमाचौकड़ी होती है तो लोग किसी अनजान साए से भयभीत हो जाते हैं। विकास की  खंडहर कोठी में पत्ता भी हिलता है तो लोगों की रूह कांप उठती है। ऐसा गांव के लोग कहते हैं।

विकास के घर के सामने ही 8 पुलिसकर्मियों की हत्या की गई थी। उसके घर के आसपास रहने वाले ही मुठभेड़ में मारे गए। इस नाते दिन ढलने के बाद कोई नहीं जाता। वैसे भी मारे गए लोगों के परिवारों के लोग भी घरों से नहीं निकलते।

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