उत्तर प्रदेश फसल के लिए है बारिश पर निर्भर

रबी की फसल के लिए ज्यादातर बारिश पर निर्भर उत्तर प्रदेश का पूर्वी हिस्सा तकरीबन सूखे की मार झेल रहा है। उसके सटे बिहार के 23 जिलों के 205 प्रखंडो को वहां की सरकार सूखाग्रस्त घोषित कर चुकी है, लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए प्रदेश की सरकार ने न तो ऐसा किया है और न ही यहां के सामाजिक या राजनितिक नेतृत्व ने ऐसी मांग की है।

वैसे भी राज्य के पश्चिमी इलाकों की तरह पूर्वी इलाकों की किसान लामबंद नहीं है, इसलिए यहां ऐसी मांग की उम्मीद भी नहीं है। राज्य शायद ही कोई कृषि भूमि ऐसी है,जहां बोरिंग या नहर के पानी से नमी लाए बिना रबी की बुवाई हो सके। शुक्र है कि राज्य कि राज्य सरकार अपने वायदे के मुताबिक गांवों को लगातार अठारह घंटे की बिजली मुहैया करा रही है, जिससे बोरिंग चलाए जा रहे हैं।


साल 2018 में मानसून ने उत्तर प्रदेश को परेशान किया है। आंकड़ो के मुताबिक इस साल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तकरीबन सामान्य से 14 प्रतिशत कम वर्षों रिकॉर्ड की गई है बारिश की यह कमी मानसून के आखिरी महीने में दिखी।

किसानों का कहना है कि यहां अब बोरिंग कराने से सौ से डेढ़ सौ फीट नीचे ही भूजल मिल जाता था। चूंकि यह इलाका गंगा और घाघरा नदियों का है, लिहाज अब तक यहां माना जाता रहा है कि भूजल स्तर यहां नीचे नही जाएगा। लेकिन अब पूरे पूर्वांचल का भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। इसका असर फसल चक्र और पैदावार पर भी पडे़ बिना नहीं रहेगा। गंगा के प्रदूषण की वजह से खासतौर पर बलिया का पानी आर्सेनिक युक्त बना हुआ है।


अगर इस इलाके के लिए अभी से नहीं चेता गया तो आने वाले दिनों में यहां कि तसवीर भी राज्य के पश्चिमी इलाके की तरह ही हो जाएगी। राज्य के पश्चिमी इलाकों के साथ ही एक अच्छी बात यह है कि यहां नहरों का जाल बिछा हुआ है, जबकि पूर्वी इलाकों में नहरों का जाल नहीं है। इसलिए यहां के किसान खेती के लिए भूजल पर ही ज्यदा निर्भर हैं।

पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह मानसून की मिजाज बिगड़ा है, उसका असर पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में बारिश की कमी के तौर पर नजर आने लगा है। दक्षिण पश्चिम मानसून से देश भर में साल 2018 में कुल नौ प्रतिशत बारिश की कमी दर्ज की गई है। वर्षा की कमी का सबसे ज्यादा प्रभाव झारखंड और गुजरात राज्य पर पड़ा जहां 28 फीसदी कम वर्षा रिकॉर्ड की गई। उत्तर प्रदेश और हरियाणा में 10 फीसदी कम बारिश हुई है।
बहरहाल वक्त है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए सरकार और यहां का समाज अभी से चेते। अन्यथा आने वाले दिनों में यहां भी हालात बुंदेलखंड जैसे बन सकते हैं। हालांकि सामाजिक वानिकी के चलते पच्चीस-तीस साल पहले जो पौधारोपण हुआ, उसका असर कम से कम सड़कों के किनारे घने पेड़ो के रूप में दिखने लगा है। लेकिन यह अब भी मौसम को नियंत्रित करने के लिए नाकाफी है।

एक दौर में पूर्वी उत्तर प्रदेश के हर गांव में मानव निर्मित और प्राकृतिक तालाबों की भरमार थी,लेकिन अब वे तालाब या तो पाट दिए गए हैं या उन पर अवैध कब्जा हो गया है। इसलिए जो भी बारिश होती है, अब उसका सारा पानी बह जाता है। इसलिए जरूरत है कि सरकार और समाज अपने तालाबों के लिए जागे। यहां तालाब क्रांति वक्त की जरुरत है। अन्यथा खेती-किसानी और प्रवासी मनी ऑर्डर की व्यवस्था वाले इस इलाके में आने वाले दिन भयावह होंगे।

By admin

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