नेहरू ने बताए थे जीने के कुछ राज

तुम इतिहास किताबों में ही पढ़ सकती हो। लेकिन पुराने जमाने में तो आदमी पैदा ही न हुआ था; किताबें कौन लिखता? तब हमें उस जमाने में की बातें कैसे मालूम हो? यह तो नही हो सकता कि हम बैठे-बैठे हर एक बात सोच निकालें। यह बडे़ मजे की बात होती है क्योकि हम जो चीज चाहते, सोच लेते।

लेकिन जो कहानी किसी बात को देखे बिना ही गढ़ ली जाए, वह ठीक कैसे हो सकती है?लेकिन खुशी की बात है की बात है कि उस पुराने जमाने कि लिखी हुई किताबे न होने पर भी कुछ ऐसी चीजे हैं, जिनसे हमें उतनी ही बाते मालूम होती हैं जितनी किसी किताब से होतीं।

ये पहाड़, समुद्र, सितारे नदियां, जंगल, जानवरों की पुरानी हडि्डयां और इसी तरह की और भी कितनी ही चीजें हैं, जिनसे हमें दुनिया का पुराना हाल मालूम हो सकता है।

मगर हाल जानने का असली तरीका यह नहीं है कि हम केवल दूसरों की लिखी हुई किताबें पढ़ लें, बल्कि खुद संसार-रुपी पुस्तक को पढ़े मुझे आशा है कि पत्थरों और पहाड़ो को पढ़ कर तुम थोडे़ हा दिनों में उनका हाल जानना सीख जाओगी। सोचो, कितनी कितनी मजे कि बात है। एक छोटा -सा रोड़ा, जिसे तुम सड़क पर या पहाड़ के नीचे पड़ा हुआ देखती हो, शायाद संसार की पुस्तक का छोटा सा पृष्ठ हो, शायद उससें तुम्हे कोई नई बात मालूम हो जाए।

शर्त यही है कि तुम्हें उसे पढ़ना आता हो। कोई जबान, उर्दू, हिन्दी या अंग्रेजी सीखने के लिए तुम्हे उसके अक्षर सीखने होते हैं। इसी तरह प्रकृति के अक्षर पढ़ने पड़ेगें, तभी तुम उसकी पत्थरों और चट्टानों की किताब से पढ़ सकोगी। जब तुम कोई छोटा-सा गोल चमकीला रोड़ा देखती हो, तो क्या वह तुम्हे कुछ नही बतलाता?

 

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