पेट के सभी रोग नाभिचक्र की गड़बड़ी से होते हैं। नाभि ऊपर की ओर हो तो गैस,खट्टी डकारें, कब्ज आदि की समस्या होती है। नाभि नीचे की ओर खिसकी हो तो दस्त, जी-मिचलाने जैसी समस्याएं होती हैं। सुरभि-मुद्रा नाभिचक्र को व्यवस्थित रखती है। यह एकमात्र मुद्रा है, जो वात, कफ और पित्त तीनों का संतुलन करती है।
एक हाथ की तर्जनी उंगली को दूसरे हाथ की मध्यमा उंगली से स्पर्श करें। दूसरे हाथ की तर्जनी उंगली को पहले हाथ की मध्यमा उंगली से लगाएं। फिर पहले हाथ की अनामिका को दूसरे हाथ की कनिष्ठा से और दूसरे हाथ की अनामिका को पहले हाथ की कनिष्ठा उंगली से मिलाएं। दोनों अंगूठो को अलग रखें। हथेलियों की दिशा नीचे की ओर रहे। इसे रोजाना 15-15 मिनट 3 बार करें।