’’खामोशी’’

ज्योँ खामोशी सी छा जाए

इन बंद मकानों में,

यूं ही कहीं जंग न लग जाए मेरे अरमानों में।

कुछ पल तो उजाले के

मुझको भी दे या रब,

कहीं उम्र ना कट जाए यूं ही दीप जलाने में।

हर शख्स लिए फिरता है

अपना टूटा बिखरा सा दिल,

क्या कभी देखा है हमको मयखाने में।

कई लोग मिले कई बिछड़ गए

कुछ राग छिड़े कुछ बिखर गए।

पर ढल न पाया गीत कोई मेरे अफ़साने में।

वो जाने कहॉ छिपा बैठा

सुरमई मिलन का गीत लिए,

दिल कब तक ढूंढेगा उनको इन अंजाने बेगानों में।

ज्योँ खामोशी सी छा जाए

कुछ बंद मकान में।

 

……….प्रियंका

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