सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला, बिल्डर्स पर पड़ा भारी

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में व्यवस्था दी है कि बिल्डर-खरीदार एग्रीमेंट में बिल्डर का एकतरफा करार अनुचित व्यापार व्यवहार है। यह अनुबंध उपभोक्ता संरक्षण कानून, 1986 की धारा 2R के तहत अवैध है।

जस्टिस यूयू ललित और इंदु मल्होत्रा की पीठ ने यह टिप्पणियां करते हुए बिल्डर फ्लैट खरीदार को एकतरफा अनुबंध में नहीं बांध सकता। मामला राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के फैसले के खिलाफ अपील के निर्धारण का था। आयोग ने फैसला दिया था कि अनुबंध में बिल्डर को ब्याज के दावे का विरोध करने का प्रावधान एकतरफा, पूरी तरह से अनुचित और वे बुनियाद है। इस प्रावधान पर कार्यवाही नहीं की जा सकती।

पीठ ने एग्रीमेंट का अध्ययन करते हुए कहा कि अनुबंध में दोनों पक्षों को उपलब्ध राहतों में भारी अंतर है। जैसे अनुबंध में बिल्डर को शक्ति है कि वह खरीदार से 18 फीसदी की दर से ब्याज लेगा यदि वह किश्त देने में विफल रहेगा या विलंब करेगा। वहीं, बिल्डर यदि फ्लैट देने में देरी करेगा तो उससे खरीदार 9 फीसदी की दर से ब्याज लेगा।

फैसले में कहा कि उपभोक्ता कानून की धारा 2R के तहत जिसमें अनुचित व्यापार व्यवहार को परिभाषित किया गया है, कहा गया है कि ऐसी बिक्री जिसमें छिपाकर कुछ कहा गया हो अनुचित व्यवहार होगा। कोर्टने कहा कि यह परिभाषा अंतिम नहीं है। ऐसा अनुबंध जिसकी शर्तों में खरीदार को सिर्फ साइन ही करने हों और उसके पास कोई विकल्प न हो, बाध्यकारी नहीं हो सकता।

मौजूदा अनुबंध एकतरफा है जिसमें फ्लैट बेचने के लिए बिल्डर ने अनुचित तरीका इस्तेमाल किया है। कोर्ट ने फैसले में विधि आयोग की 199 वीं  रिपोर्ट का हवाला दिया और कहा कि ऐसा अनुबंध, जिसमें शर्तें बहुत कठिन हों, दमनकारी हों और एक पक्ष द्वारा पूरी न की जा सकने वाली हों, अनुचित होगा।

पीठ ने कहा कि इस मामले में बिल्डर अपने अनुबंधीय फर्ज पूरे करने यानी समय से फ्लैट देने में विफल रहा है। यहां तक कि तय समय के बाद ग्रेस पीरियड भी गुजर गया। ऐसे में खरीदार को दो साल के बाद घर लेने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। पीठ ने कहा कि बिल्डर खरीदार गीतू गिडवानी वर्मा को पूरा पैसा तीन हा के अंदर वापस करे। मामला गुरुग्राम के पायनियर अर्बनलैंड इंफ्रा लि. का था।

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