संत कवि कबीर दास के भजन अब उर्दू अल्फाज में गुजेंगे

संत कवि कबीर दास के भजनों को अब उर्दू अल्फाज व मिठास के साथ पढ़ा जाये गा युवा शायर हाशिम रजा जलालपुरी इन दिनों कबीर की वाणी में उर्दू की मिठास घोल रहे हैं। जल्द ही कबीर के भजन उर्दू में भी गूंजेंगे। मीराबाई के पदों को उर्दू शायरी में अनुवाद करने वाले नौजवान शायर हाशिम रजा जलालपुरी इन दिनों कबीरदास के 100 भजनों को उर्दू शायरी में ढाल रहे हैं।

हाशिम रजा जलालपुरी का ताल्लुक अवध की इल्मी और अदबी सरजमीन जलालपुर से है। जलालपुर शायरों, लेखकों और दानिशवरों की धरती मानी जाती है। यहीं की मिट्टी में जन्मे पद्मश्री अनवर जलालपुरी ने गीता को उर्दू शायरी में ढाल कर पूरी दुनिया कोआपसी सौहार्द और मेल मोहब्बत का पैगाम दिया। उसी मिट्टी के लाल हाशिम रजा ने पहले मीरा बाई के पदों को उर्दू में अनुवाद कर के गंगा जमुनी तहजीब की मिशाल पेश की अब वो कबीरदास के भजनों को उर्दू शायरी पिरोने में लगे हैं।

हाशिम रजा का जन्म 27 अगस्त 1987 को नौहों और सलाम के मशहूर शायर जुल्फिकार जलालपुरी और सरवरी बानो के घर हुआ। शायरी की विरासत उन्हें अपने वालिद से मिली पर गीता को उर्दू शायरी में अनुवाद करने वाले पद्मश्री अनवर जलालपुरी और लखनऊ यूनिवर्सिटी में उर्दू के विभागाध्यक्ष प्रो. नैयर जलालपुरी भी उनके प्रेरणास्रोत रहे। हाशिम रजा जलालपुरी ने रूहेलखंड यूनिवर्सिटी बरेली से बी.टेक और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अलीगढ़ से एमटेक की डिग्री हासिल की। बीटेक और एम.टेक के बाद उर्दू साहित्य में एम.ए. किया।

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