अगर डायबिटीज के मरीज रखते है रोजा तो जान ले यह बात

रमजान का महीना शुरू हो रहा है। लोग रोजा रखेंगे, लेकिन जो व्यक्ति डायबिटीज, हदय रोग व हाई ब्लड प्रेशर से ग्रस्त हैं, उन्हें रोजा रखने से पूर्व कुछ सजगताएं बरतनी चाहिए। भारत कई संस्कृतियों का समागम है। सभी संस्कृतियों की अपनी मान्यताएं हैं और उन्हें निभाने के तरीके भी अलग-अलग हैं। इसलिए भारत में कई त्योहार मनाए जाते हैं। एक से अधिक कैलेंडर भी हमारे देश में मौजूद हैं।

रमजान भी इन परंपराओं का एक महत्वपूर्ण अंग हैं, जो इस्लामिक कैलेंडर के नौवें महीने में मनाया जाता है। मुस्लिम समुदाय में इस महीने को परम पवित्र माना जाता है। रमजान के महीने में सुबह सूरज निकलने से पहले सहरी के वक्त खाने की परंपरा है और फिर शाम को सूरज ढलने के बाद एक तय समय पर इफ्तार किया जाता है। इस बीच किसी भी प्रकार का अन्न ग्रहण करना या पानी पीने की सख्त मनाही होती है।

रोजा रखने का निर्णय व्यक्तिगत है, लेकिन डायबिटीज वाले व्यक्तियों को रोजे रखने का निर्णय धार्मिक दिशा-निर्देशों में दी गई छूट को ध्यान में रखकर ही लेना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि रोजे के दौरान आहार और जीवनशैली में काफी परिवर्तन आ जाता है। इस कारण डायबिटीज से ग्रस्त व्यक्तियों में रक्त शर्करा सामान्य से कम होने का खतरा बढ़ जाता है, जिसे हाइपोग्लाइसीमिया कहते हैं।

हाइपोग्लाइसीमिया में कुछ लक्षण महसूस हो सकते हैं। जैसे अचानक पसीना आना, शरीर में कमजोरी या कंपन होना, दिल की धड़कनें तेज होना आदि। अगर ध्यान न दिया जाए तो बेहोशी या कोमा में जाने की स्थिति आ सकती है। इसके अलावा यह भी देखा जाता है कि रोजे के दौरान उपवास की समाप्ति अक्सर अधिक कैलोरी युक्त, तले हुए और मीठे भोजन से होती है। इस कारण रक्त शर्करा काफी बढ़ सकती है। रोजे के दौरान लंबे समय तक तरल पदार्थों का सेवन न करने के कारण डीहाइड्रेशन की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है। खासकर उन लोगों में जो हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने के लिए ऐसी दवाएं लेते हैं, जो शरीर से पानी निकालती हैं।

 

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