बमरौली के खंडहर में छुपा- आजादी का स्वर्णिम इतिहास

 

बिलसंडा(पीलीभीत)। आज भले ही अपराज्य योद्वा कुंवर भगवान सिंह हम सभी के बीच न हो, लेकिन उनकी खंडहर हो चुकी गढ़ी की इमारत आज भी आजादी के स्वर्णिम इतिहास की दास्तां सुना रही है।

यह वही गढ़ी है, जिसमें आजादी के दीवानें कुंवर भगवान ने आजादी की बुलंदियों की कहानी गढ़ी थी। आज कुंवर साहब की दो जून को पुण्य तिथि है, पता नहीं उनकी समाधि को दो श्रद्वा के पुष्य भी नसीब हुए भी होंगे या नहीं -?।

पीलीभीत जिले में क्रांतिकारी का नेतृत्व करने बाले अपराज्य योद्वा कुंवर भगवान सिंह बिलसंडा के इसी बमरौली गांव के रहने वाले थे। प्रथम विधायक चुने जाने का सौभाग्य भी इन्हें प्राप्त था। वे विधायक पद पर आसीन रहने के अलावा नेपाल के राजदूत भी रहे।

इतना ही नहीं आज कुंवर साहब की गढ़ी जो खंडहर हो चली है उसमें कभी कांकोरी कांड को अंजाम देने के लिए लूट की कहानी भी गढ़ी गई थी। कुंवर साहब के कोई अपनी संतान नहीं थी लेकिन कुंवर साहब ने भारत मां की सच्ची सेवा की और तहसीलदार की नौकरी को भी तिलांजलि दे दी।

बमरौली में ऐतिहासिक गढ़ी के अवशेष आज भी है जिसे कुछ सजाने संवारने का प्रयास उनके भतीजे राजेश सिंह से किया है, लेकिन फिर भी उनकी गढ़ी खंडहर होकर भी आजादी का स्वर्णिम इतिहास की दास्तां सुनाने रही है।

*दो पुण्य भी नहीं हुए नसीब -?*

पता नहीं देश की आजादी के दीवाने अपराज्य योद्वा कुंवर भगवान सिंह की समाधि पर दो श्रद्वां के पुष्य नसीब भी हुए होंगे या नहीं। वैसे गांव के किसी भी व्यक्ति की ओर से इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी।

अफसोस! कभी कुंवर साहब ने भी सोचा होगा कि कभी ऐसा भी दिन आयेगा जब जो दो पुष्प के लिए भी उनकी समाधि पर अर्पित नहीं हो सकेगे। क्योंकि आज दो जून को कुंवर साहब की पुण्यतिथि जो थी। कुंवर साहब के भतीजे राजेश सिंह ने फोन पर बताया कि मेरा स्वास्थय ठीक नहीं था इसलिए घर पर उनके चित्र को नमन किया है।

*मुझे अफसोस है- देव स्वरूप पटेल*

उत्तर प्रदेश क्रांतिकारी विचार मंच के संरक्षक देवस्वरूप पटेल ने बताया कि वो प्रतिवर्ष दो जून को कुंवर भगवान सिंह जी की पुण्यतिथि को समारोह पूर्वक मनाते आ रहे हैं इस बार मैं बरेली में था और लांक डाउन के कारण गांव बमरोली नहीं आ सका और घर पर ही कुंवर साहब के चित्र पर श्रद्वा के दो पुष्प अर्पित कर नमन कर किया है।

श्री पटेल ने इस बात पर अफसोस जाहिर किया।ऐसे महान क्रांतिकारी को याद करने के लिए भी लोगों के पास समय नहीं है। कम से कम दो पुष्प तो समाधि पर अर्पित किए जा सकते थे।

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